चैत्र नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान 25 मार्च 2020
घटस्थापना हेतु शुभ मुहूर्त 25 मार्च 2020, बुधवार के दिन पूर्वाह्न 06:23 से 07:17 तक (अवधि 00 घण्टा 54 मिनट) , विक्रम संवत् 2077, शक संवत् 1942, नक्षत्र रेवती, योग ब्रह्म, करण बव, ऋतु बसंत, अयन, उत्तरायण, रहेगा, प्रतिपदा तिथी समाप्ति सांय 05:31बजे होगी।
इस लिए घट स्थापना सुबह 06:23 से 07:17 तक में करना शुभ रहेगा।, इस दौरान द्वि-स्वभाव मीन लग्न की समाप्ति 07:17 होगी।
पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं) बोया जाता है।
घट स्थापनकी शास्त्रोक्त विधि इस प्रकार हैं।
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु सबसे शुभ अभिजित मुहुर्त माना गया हैं। जो 25 मार्च 2020 को दोपहर 12:002 से दोपहर 12:51 बजे के बीच है।
इस वर्ष प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ 24 मार्च 2020 को अपराह 3 बजकर 00 मिनट से 25 मार्च 2020 संध्या सांय 05:31बजे होगी।
इस लिए 25 मार्च 2020 के शुभ मुहूर्त उत्तम रहेंगे।
घट स्थापना के अन्य शुभ मुहूर्त
सुबह 06:23 से सुबह 07:54 तक लाभ, सुबह 07:54 से सुबह 09:25 तक अमृत, दिन 10:56 से दोपहर 12:27 तक शुभ चौघडिया, अभिजित मुहुर्त दोपहर 12:002 से दोपहर 12:51 बजे के बीच रहेगा।
मूल लेख सौजन्य
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कुछ जानकार विद्वानो का मत हैं की नवरात्र स्वयं अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहुर्त होने के कारण इस तिथि में व्याप्त समस्त दोष स्वतः नष्ट हो जाते हैं इस लिए घट स्थापना प्रतिपदा के दिन किसी भी समय कर सकते हैं।
यदि ऐसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं।
कलश स्थापना हेतु अन्य शुभ मुहूर्त
· लाभ चौघडिया सुबह 06:23 से सुबह 07:54 तक,
· अमृत चौघडिया सुबह 07:54 से सुबह 09:25 तक,
· शुभ चौघडिया दिन 10:56 से दोपहर 12:27 तक,
· अभिजित मुहुर्त दोपहर 12:002 से दोपहर 12:51 बजे तक के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त रहेंगे।
घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं बोएं तथा उस पर अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करना चाहिए।
यदि पूर्ण विधि-विधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेश-अंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ब्राह्मण द्वारा कराएं अथवा अमर्थता हो, तो स्वयं करें।
पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी
प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए।
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा
उसका गंध, चावल, व पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें-
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।
नोट: उपरोक्त वर्णित मुहूर्त को सूर्योदय कालिन तिथि या समय का निरधारण नई दिल्ली के अक्षांश रेखांश के अनुशार आधुनिक पद्धति से किया गया हैं। इस विषय में विभिन्न मत एवं सूर्योदय ज्ञात करने का तरीका भिन्न होने के कारण सूर्योदय समय का निरधारण भिन्न हो सकता हैं। सूर्योदय समय का निरधारण स्थानिय सूर्योदय के अनुशार हि करना उचित होगा।
इस लिए किसी भी मुहूर्त का चयन करने से पूर्व किसी विद्वान व जानकार से इस विषय में सलाह विमर्श करना उचित रहेगा।
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